wo bhuli daasta - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

वो भूली दास्तां, भाग-१

अरे, बिट्टू कब तक सोती रहेगी। 5:00 बज गए हैं शाम के। रश्मि के घर से कई बार तेरे लिए बुलावा आ चुका है। जाना नहीं है उसके मेहंदी पर!"
यह सुनते ही बिट्टू झटपट उठ बैठी। " क्या मां तुमने उठाया क्यों नहीं मुझे! अब मैं कब तैयार होऊगी । सुनीता कितना बिगड़ेगी। बाप रे बाप! कैसे करूं सब कुछ इतनी जल्दी!"

"कुछ मत कर महारानी बैठ जा! तेरी मां तैयार हो जाएगी तेरे नाम का। ‌उसने ही तुझे सिर पर चढ़ा रखा है। ऊंट जितनी लंबी हो गई है लेकिन अक्ल घुटनों में ही है। " बिट्टू की दादी बाहर बैठे बैठे ही बडबडाते हुए बोली।
"दादी एक तो मैं वैसे ही परेशान हूं और ऊपर से तुम शुरू हो गई। चलो आज तो मैं तुमसे ही तैयार होकर जाऊंगी !"
"हमने तो कभी ना किए ये तुम्हारे जैसे फैशन!"
"रहने दे दादी! वो रजनी की दादी बताती थी कि आप अपने समय की हीरोइन थीं। यूं ही हमारे दादा आप पर फिदा ना हुए होंगे।"
"चल मुई, कैसी बात करती है!" दादी शरमाते हुए बोली।
"अब सारा टाइम हंसी ठिठोली में हीं निकाल देगी । जाना ना है क्या!" बिट्टू की मां उसे डांटते हुए बोली।
"हाय राम ! मैं तो फिर भूल गई।"
"तुझे बातों से फुर्सत मिले तब ना ! बातों का ही खाती है बस। हे, भगवान ससुराल में कैसे काम चलेगा इस लड़की का। इसके यही लक्षण रहे तो इसकी सास इसे जीने ना देगी!"‌ दादी ने अपनी राय दी।
"दादी गाड़ी दौड़ेगी मेरी ससुराल में और देखना सास ही पानी भरेगी मेरे आगे!"
"हां हां राजकुमारी जी तुझसे बातों में पार पाना मुश्किल है!" कह दादी उठकर बाहर चली गई।
यह थी चांदनी। घर में सब प्यार से इसे बिट्टू ही कहते हैं। ‌ यह नाम इसके पापा सुमेर सिंह ने इसे दिया था।‌ जो 5 साल पहले बीमारी से चल बसे। चांदनी से तीन साल छोटा उसका भाई भूषण है।
सुमेर सिंह बहुत ही मेहनती व पढ़ा लिखा इंसान था‌ और गांव में अपनी खेती बाड़ी देखता था ।
बिट्टू उसकी पहली संतान थी।‌ उसके जन्म के बाद ही उसकी नौकरी लग गई और ‌वह शहर आ गया। जब तक उसके पिता रहे वह खेती-बाड़ी संभालते रहे हैं लेकिन उनकी मृत्यु के बाद वह अपनी मां व पूरे परिवार को शहर में ही ले आया और गांव की जमीन खेती-बाड़ी के लिए बटाई पर दे दी।
बिट्टू को वह अपने लिए बहुत भाग्यशाली मानता था और उसे बहुत प्यार करता था। अपने पापा के साथ साथ घर के सभी सदस्यों की वह बहुत लाडली थी। इसी लाड प्यार के कारण वह बहुत जिद्दी भी हो गई थी। घर के काम काज से तो उसका दूर-दूर तक नाता ना था। मां ‌या दादी कुछ कहती थी तो सुमेर सिंह कह देता था मां देखना अपनी राजकुमारी की ऐसे घर में शादी करूंगा । जहां उसे एक तिनका भी ना उठाना पड़े।
यह सुन उसकी मां यह कहती " बेटियां तो चाहे राजा की हो या रंक की बहू बनकर जब दूसरे घर जाती है तो मायके जैसे वह ठाट ना रहते हैं।"
"तू देखती रहना मां, यह तो वैसे भी अपनी किस्मत ऊपर से लिखा कर लाई है। पता है ना इसके आने के बाद घर में कैसे मौज ही मौज हो गई। अपनी बेटी की शादी किसी राजकुमार से ही करूंगा देख लेना तू!"
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। कई महीनों से सुमेर सिंह कमजोरी महसूस कर रहा था। चलने फिरने में भी उसे दिक्कत हो रही थी लेकिन उसने इस‌ओर ज्यादा ध्यान ना दिया। जब ज्यादा ही बेचैनी बढ़ने लगी तो वह डॉक्टर के पास गया। चेकअप करने वे रिपोर्ट के बाद पता चला कि उसे लास्ट स्टेज का ब्लड कैंसर है। सुनकर सभी के पैरों तले से जमीन निकल गई और 6 महीने बाद सुमेर सिंह पूरे परिवार को रोता बिलखता छोड़ इस दुनिया से चला गया।
सब कुछ इतना अचानक हुआ किसी को कुछ समझ में ना आया। बिट्टू 15 साल की थी और उसका भाई तो अभी 12 का ही हुआ था।
सुमेर सिंह के अचानक जाने के बाद सारे परिवार पर मातम सा छा गया। बूढ़ी मां अपने जवान बेटे को अपने सामने जाता देख वैसे ही अधमरी हो गई थी । पति के जाने का गम क्या होता है यह उसकी पत्नी के अलावा और कौन जान सकता है। सुमेर सिंह की पत्नी विद्या कौन सी अपने आपे में थी। लेकिन अपनी सास व बच्चों का हाल देख उसने अपने दुख को अपने सीने के अंदर ही समेट लिया और घर को फिर से पटरी पर लाने के लिए हिम्मत जुटा उठ खड़ी हुई।

शाम को तैयार हो चांदनी, रश्मि के यहां पहुंची। शादी का‌ घर था । रिश्तेदारों का जमावड़ा लगा था। बहुत ही चहल-पहल थी आज पूरे घर में। ‌ एक तरफ घर को लाइट व फूलों से सजाने वाले लगे थे। दूसरी ओर रश्मि के पिता व चाचा एक दूसरे से कल बारात स्वागत के बारे में विचार विमर्श कर रहे थे। वहीं उसके भाई हलवाइयों के लिए सामान जुटाने में लगे थे। घर की छत पर हलवाई लड्डू , मठरी व कई तरह की मिठाइयां बनाने में लगे थे। मिठाइयों की सुगंध से घर के साथ साथ गली व पूरा मोहल्ला महक रहा था। घर की महिलाएं शाम के खाने पीने की तैयारियां कर रही थी। उसके साथ ही सभी हंसी ठिठोली में मगन थी।
चांदनी को देखते ही रश्मि की मां ने कहा "अरे चांदनी, तू अब आई है। जल्दी से उसके पास जा। बहुत नाराज है तुझसे! कब से तेरा इंतजार कर रही है। मेहंदी वाली भी आ चुकी है। आज तो समय से आना था तुझे !"
"अरे चाची , मैं तो आ ही रही थी, वो दादी ने काम में लगा लिया।"
"बस झूठ ऐसा बोला कर , जो हजम हो जाए। समझी! जा अब नहीं तो यहां बातों में लग जाएगी!"
चांदनी हंसते हुए रश्मि के कमरे की ओर बढ़ी। उसने देखा कि उसे छोड़ बाकी सहेलियां आ चुकी थी।
वह जल्दी से जा रश्मि के गले में बाहें डालते हुए बोली " ओए होए मेरी रानी, तो कल किसी और के दिल की रानी बन जाएगी। हाय तुझे बिल्कुल भी रहम नहीं आ रहा हम सबको यों अकेला छोड़ जाते हुए!"
उसको इस अदा के साथ बोलता देख सभी सहेलियों की हंसी छूट गई।
रश्मि ने उसकी बाहें पीछे करते हुए कहा "नौटंकी बंद कर। सब पता है मुझे तेरा! अपनी गलती छुपाने के लिए यह नाटक कर रही है। "
"देखो तो कैसी बेदर्दी है! हमारा गम इसे नाटक लग रहा है। पता है कितना दुखी थी मैं! तेरे दूर जाने की सोच कर। तुझसे बिछड़ कर नहीं जी पाऊंगी बेदर्दी!" बड़ी अदा से उसने रश्मि का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा।
"नौटंकी की महारानी है तू! बस बंद कर अपना यह ड्रामा। पता है मुझे, कुंभकरण है तू सोती रही होगी ना!" रश्मि ने हंसते हुए कहा।
"हाय कितनी अंतर्यामी है मेरी सखी तो! सब भेद जान लेती है, यहीं बैठे बैठे! पता नहीं है हमारे जीजा जी कैसे बच पाएंगे इसकी दिव्य दृष्टि से।" चांदनी उसे छेड़ते हुए बोली।
"चुप कर बड़ी आई जीजा जी वाली।" रश्मि शरमाते हुए बोली।

"हाय देखो तो कैसे शर्म से लाल हो रही है हमारी बन्नो रानी!"

रश्मि अभी कुछ और कहती उसकी मां अंदर आई और बोली "खाना तैयार है। पहले सब खाना खा लो। फिर उसके बाद मेहंदी और गीत संगीत की तैयारी करना। चांदनी आज रात तू यही रुक जाना रश्मि के पास!"
"चाची , दादी का तो पता है ना आपको। मेरा रुकना उन्हें पसंद नहीं आएगा। नाराज हो जाएंगी। संगीत के बाद वापस चली जाऊंगी। भाई और मां आएंगे मुझे लेने।"

"चल ठीक है वह भी अपनी जगह सही है। अच्छा चलो खाना खा लो। फिर खूब रौनक लगाना सभी सहेलियां मिलकर।" रश्मि की मां ने कहा।
"इसकी चिंता मत करो चाची। ऐसी रौनक लगाएंगे हम सब कि आपके सारे रिश्तेदार देखते रह जाएंगे। आखिर हमारी प्यारी सी सहेली रश्मि की शादी है। हां चाची आप भी अपनी कमर कस लेना। छोड़ेंगे हम आपको भी नहीं। खूब नचाएंगे अपने साथ। क्यों सहेलियों सही कह रही हूं ना मैं!"
सभी सहेलियों ने उसकी हां में हां मिलाते हुए कहा हां आंटी जी डांस तो आपको हमारे साथ करना ही होगा और रश्मि की बच्ची तू भी तैयार रहना।
" मुझे नाचना ना आता! देखा है कभी मुझे नाचते हुए।" रश्मि की मम्मी हंसते हुए बोली।
"वह तो हम सिखा देंगे आपको आंटी जी, बस आप तैयार रहना।" सभी सहेलियां एक साथ चिल्लाते हुए बोली।
अच्छा ठीक है बाबा ठीक है अब पहले चलो नहीं तो तुम्हारी बातों में खाना ठंडा हो जाएगा।"

उसके बाद तो‌ चांदनी और दूसरी सभी सहेलियों ने मिलकर खूब बन्नी के गीत गाए और खूब ढोलक की थाप पर नाची। साथ ही एक एक रिश्तेदार से ठुमके लगावाए । सभी रिश्तेदारों व घरवालों ने वाह वाही के साथ साथ सबकी बहुत तारीफ की और खूब रूपए वारे।
मेहंदी वाली को देखते ही चांदनी उससे बोली "दीदी ऐसी मेहंदी लगाना हमारी बन्नो रानी को जिसका रंग हमारी सहेली के साथ साथ जीजाजी पर भी ऐसा चढ़े कि वह हमेशा इसके ही प्यार में डूबे रहे। सही कह रही हूं ना बन्नो।" चांदनी ने शरारत भरी नजरों से रश्मि की तरफ देखते हुए कहा।

"हां हां, बिट्टू रानी तू कभी गलत कह सकती है।" रश्मि शरमाते हुए बोली।
"तू यहां सबके सामने मुझे बिट्टू बिट्टू मत कह । चांदनी नाम है हमारा!"
"तो देवी चांदनी, तू भी जरा खिंचाई बंद कर मेरी। वैसे समय आने दे, जितना तू हमें सता रही है ना, हम भी गिन गिन के बदला लेंगे तुझसे समझी!"
"वह समय नहीं आएगा बन्नो रानी। हमें नहीं पडना शादी-वादी के चक्कर में!
आज आज और सता ले कल तो हमारी चिड़िया फुर्र हो जाएगी। वैसे यार इतने सालों की दोस्ती है तेरी मेरी और अब! क्या सचमुच कल के बाद तू पराई हो जाएगी। फिर किससे मैं अपने दिल का हाल कहूंगी। क्या सचमुच तू हमें छोड़ कर जा रही है!" कहते हुए चांदनी भावुक हो गईं और उसकी आंखों में आंसू आ गए।

उसकी बातें अंदर आते हुए रश्मि की मां ने सुनी तो वह भी भावुक हो गई और बोली "दुनिया ने पता नहीं यह कैसी रीत बनाई है। बेटी को पाल पोस कर बड़ा करो और फिर 1 दिन अपने कलेजे के टुकड़े को अपने ही हाथों दूसरे के हाथों सौंप उसे विदा कर दो।"
उनकी बात सुन रश्मि भी अपने आंसू ना रोक पाई । किसी तरह वो अपने आप को संभालते हुए बोली " मैं कोई पराई नहीं हो रही। हां शादी कर दूसरे घर जा रही हूं। इसका मतलब यह तो नहीं है कि यह घर मेरा नहीं रहा। मैं तो आ‌ती जाती रहूंगी यहां पर। आपके होने वाले जमाई राजा ने वादा किया है मुझसे। अब अपने आंसू पूछो और मुस्कुरा दो मां!"

यह सुन रश्मि की मां और चांदनी दोनों ही मुस्कुरा उठे। फिर उन्होंने रश्मि के सिर पर प्यार से हाथ रख, उसका माथा चूम लिया। दोनों ही मां बेटी एक बार फिर अपने आंसुओं को बहने से ना रोक पाई।
यह देख चांदनी ने कहा "चाची आप दोनों यूं ही गंगा जमुना बहाते रहे तो आंसुओं के सैलाब में हमारे चाचा जी ने जो तैयारियों में इतना पैसा लगा रखा है सब बह जाएगा। देख लो नुकसान किसका होगा फिर!"
उसकी बात सुन सभी हंस पड़े।
तभी रश्मि का भाई अंदर आया और चांदनी को बताया कि उसकी मां व भाई उसे लेने आया है।

क्रमशः
सरोज ✍️

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